भारतीय संविधान की प्रस्तावना क्या है?

 

भारतीय संविधान की प्रस्तावना क्या है ?

प्रस्तावना(प्रीएमबल), को भारतीय संविधान का परिचय पत्र तथा संविधान की आत्मा कहा जाता है. सन 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा इसमें एकमात्र संशोधन किया गया था जिसमें तीन नए शब्द समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष तथा अखंडता को जोड़ा गया था. भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत के सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता को सुरक्षित करती है। 

संविधान की प्रस्तावना, जवाहरलाल नेहरू द्वारा बनाये गये पेश किया गये 'उद्येश्य प्रस्ताव ' ( उद्देश्य प्रस्ताव को नेहरू ने 13 दिसंबर, 1946 को पेश किया था जिसे 22 जनवरी, 1947 को संविधान सभा ने अपनी स्वीकृति दी थी) पर आधारित है. प्रस्तावना को सबसे पहले जिस देश ने अपनाया वह था अमेरिका, इसके बाद कई देशों ने इसे अपनाया है. संविधान के विशेषज्ञो में गिने जाने वाले श्री एन. ए पालकीवाला ने संविधान की प्रस्तावना को संविधान का परिचय पत्र के रूप में परिभाषित किया है। 

 

संविधान की प्रस्तावना ( प्रीएमबल आफ इंडियन कान्सटिट्यूशन)

हम भारत के लोगभारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्नसमाजवादीपंथनिरपेक्षलोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :न्यायसामाजिकआर्थिक और राजनीतिक,विचारअभिव्यक्तिविश्वासधर्म और उपासना की स्वतंत्रता,प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा,उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए,दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृतअधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.

 

# भारतीय संविधान में प्रस्तावना में प्रयुक्त मूल-भूत तत्वो की चर्चा की जाये तो यह चार प्रकार से परिभाषित हो सकते है। यहां मूल-भूत तत्वो से मतलब है , जिससे प्रस्तावना बताती है कि संविधान के अधिकार का स्त्रोत क्या है, राष्ट्र की प्रकृति कैसी है, संविधान का उद्देश्य क्या है तथा अन्तिम संविधान के लागू होने की तिथि क्या है।

प्रस्तावना के चार मूल-भूत तत्व निम्नलिखित है-

 

1. प्रस्तावना हम भारत के लोग से शुरू होती है अर्थात सबसे पहले बताती है, कि संविधान के अधिकार का स्रोत भारत के लोगों के साथ निहित है।

2. इसके पश्चात प्रस्तावना में राष्ट्र की प्रकृति का वर्णन किया गया जो यह बताता है कि भारत एक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र राष्ट्र है।

3. प्रस्तावना देश में निवाश करने वाले सभी लोगो के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता को सुरक्षित करता है तथा राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए भाईचारे को बढ़ावा देता है।

4. प्रस्तावना के अन्त में ही उस तारीख (26 नवंबर 1949) का उल्लेख है जिस दिन संविधान को अपनाया गया था.

 

प्रस्तावना में प्रयोग किये गये विशेष शब्दो को इस प्रकार परिभाषित किया गया हैः-

संप्रभुता (सोवरनिटी)

संप्रभुता का अर्थ होता है कि भारत विश्व के किसी भी देश पर निर्भर नही है और ना ही विश्व के किसी भी देश का उपनिवेश (डोमिनियन) है अर्थात इसके ऊपर कोई भी दूसरी शक्ति या देश नही है और भारत अपने आन्तरिक व बहारी मामलों के निर्णय स्वंय ले सकता है। तथा भारत एक संप्रभु राष्ट्र होने के नाते किसी अन्य देश की सीमा को अधिग्रहण अर्थात ले सकता है तथा अपनी सीमा के किसी हिस्से को दे भी सकता है।

समाजवादी (सोसियोलिस्ट)

 सविंधान की प्रस्तावना मे हुये एकमात्र संसोधन 42वें संविधान संसोधन सन् 1976 में यह शब्द प्रस्तावना में जोडा गया था। जिसको जोडने का उद्देश्य यह था कि भारत में उत्पन्न गरीबी, उपेक्षा(हीनभावना एक दुसरे के प्रति), बीमारी तथा सबको समान रूप से अवसर प्रदान करना। भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद को अपनाया गया है। जिसमें हमेशा लोगों के हित के लिए नीतियां बनायी जायेगी तथा अपनायी जायेगी। उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नयी आर्थिक नीति (1991) ने भारत के समाजवाद के ऊपर थोडा प्रभाव डाला जिससे इसमें थोड़ा लचीलापन आया।

 

 

धर्मनिरपेक्ष (सेक्यूलर)

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त धर्मनिरपेक्ष शब्द का अर्थ है कि भारत में सभी धर्मों को राज्यों से समानता, सुरक्षा और समर्थन पाने का अधिकार है। 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द को संविधान में 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया था। प्रस्तावना के अलावा संविधान के मूल अधिकार के अनुच्छेद 25 से 28 तक भी धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लेख किया गया है। जिसका उद्देश्य है कि भारत में सभी धर्म समान होगे। किसी एक विशेष धर्म को नहीं अपनाया जायेगा।

 

लोकतांत्रिक (डेमोक्रेसी)

प्रस्तावना में प्रयुक्त लोकतांत्रिक शब्द का अर्थ है कि जनता का शासन जनता के द्वारा अर्थात संविधान के द्वारा एक सरकार की स्थापना होती है जिसे चुनाव के माध्यम से लोगों द्वारा निर्वाचित होकर अधिकार प्राप्त होते हैं। प्रस्तावना इस बात की पुष्टि करती हैं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जिसका अर्थ है कि सर्वोच्च सत्ता लोगों के हाथ में है। लोकतंत्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र के लिए प्रस्तावना के रूप में प्रयोग किया जाता है। सरकार के जिम्मेदार प्रतिनिधि, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, एक वोट एक मूल्य, स्वतंत्र न्यायपालिका आदि भारतीय लोकतंत्र की विशेषताएं हैं। लोकतंत्र दो प्रकार का होता है प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष। भारत में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र है। जिसे प्रतिनिधि लोकतंत्र भी कहते है। जिसमें लोगों द्वारा चुने गए जनता प्रतिनिधि सर्वोच्च शक्ति का इस्तेमाल करते हैं, और सरकार चलाते हुए कानूनो का निर्माण करते है। अप्रत्यक्ष लोकतंत्र भी दो प्रकार का होता है- संसदीय और राष्ट्रपति के अधिन। जिसमें से भारत में प्रतिनिधि संसदीय लोकतंत्र अर्थात अप्रत्यक्ष संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था की गयी है।

 

गणराज्य (रिपब्लिक)

विश्व में दो प्रकार की लोकतांत्रिक राजव्यवस्था पायी जाती है , एक जिसमें शासक ही सर्वोच्च होता है और दूसरी जिसमें जनता द्वारा शासक चुना जाता है। जिन्हे क्रमश राजशाही और गणतंत्र कहते है। भारत में प्रमुख अर्थात राष्ट्रपति का चुनाव जनता के द्वारा होता है और उसका चुनाव पांच वर्ष के लिए अप्रत्यक्ष रुप से होता है। अर्थात भारत में गणतंत्रिय प्रणाली का प्रावधान किया गया है। 

न्याय (जस्टिस)

सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक तीनों प्रकार के न्यायों का उल्लेख संविधान की प्रस्तावना में किया गया है। जिनकी सुरक्षा के लिए संविधान में मौलिक अधिकार व नीति निदेशक तत्वों का प्रावधान किया गया है। सामाजिक न्याय में बताया गया है कि सभी व्यक्ति जाति, रंग, धर्म, लिंग के आधार पर विभाजित नही किये जा सकते है। सभी के साथ समान व्यवहार किया जायेगा। तथा आर्थिक न्याय के अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति से उसकी आर्थिक स्थिति के आधार पर विभेद नही किया जायेगा। तथा राजनीतिक न्याय में सभी को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होगे। चाहे वह किसी राजनीतिक दफ्तरों में प्रवेश की बात हो या अपनी बात सरकार तक पहुचाने की बात हो। सभी को समान अवसर दिया जायेगा बिना किसी भेदभाव के।

 

स्वतंत्रता (लाईबिलिटी)

स्वतंत्रता का अर्थ है बिना रोकटोक के व्यक्तियों की गतिविधियों को होने देना। (कानून का उल्लेघन किये बिना होने वाली गतिविधियां)। मौलिक अधिकार के द्वारा संविधान में अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता दी गयी है। तथा अगर किसी भी प्रकार इनका हनन होता है तो कानून का दरवाजा खटखटाया जा सकता है।

 

समानता (ईक्यूवेलिटी)

बिना भेदभाव व विशेषाधिकार वाला समाज। जिसमें किसी भी वर्ग के व्यक्तियों को विशेषाधिकार नही दिये जायेगे तथा हर व्यक्ति को समान अवसर दिया जायेगा। संविधान की प्रस्तावना भारत के हर व्यक्ति को नागरिक, राजनीतिक, व आर्थिक समानता प्रदान की गई है। तथा मौलिक अधिकारों मे भी नागरिक समानता अनुच्छेद 14 से 18 तक तथा राजनीतिक समानता अनुच्छेद 325 व अनुच्छेद 326 तथा आर्थिक समानता के विषय में नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 39 में प्रावधान किया गया है।

 

बंधुत्व (फ्रटीनिटी)

बंधुत्व का अर्थ है ऐसी भावना जिसमें भाईचारा निहित हो। संविधान की प्रस्तावना व्यक्ति और राष्ट्र की एकता और अखंडता की गरिमा को बनाये रखने के लिए लोगों के बीच भाईचारे को बढावा देती है। तथा संविधान एकल नागरिकता  के एक तंत्र के माध्यम से बधुत्व की भावना को प्रोत्साहित करता है। मौलिक कर्तव्य में भी सभी भारतीयो के लिए भाषायी, धार्मिक, क्षेत्रीय व वर्ग विविधताओं से ऊपर उठकर सौहार्द और आपसी भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करना मूल कर्तव्य होगा।

 

संविधान की प्रस्तावना में संशोधन

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में केवल एक बार संसोधन किया गया था और वह संसोधन सन् 1976 में 42वे संविधान संसोधन द्वारा किया गया था। जिसमें तीन नए शब्द- समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया था। अदालत ने इस संशोधन को वैध ठहराया था। 

नोट 

संविधान में प्रस्तावना को तब जोड़ा गया था जब बाकी संविधान पहले ही लागू हो गया था।  बेरूबरी यूनियन के मामले में (1960) सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है। हालांकियह स्वीकार किया गया कि यदि संविधान के किसी भी अनुच्छेद में एक शब्द अस्पष्ट है या उसके एक से अधिक अर्थ होते हैं तो प्रस्तावना को एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। 

केशवानंद भारती मामले (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसले को पलट दिया और यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है और इसे संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया जा सकता है लेकिन इसके मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है. एक बार फिरभारतीय जीवन बीमा निगम के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है। 

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